Tuesday, February 26, 2019

IMPORTANT TOPICS (CS 10+2)

UNIT I-Network Operating System


***नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम (Network Operating System)

नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम क्या है ?

प्रत्येक कंप्यूटिंग डिवाइस को कार्य करने के लिए एक ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है! इसी प्रकार से नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा सिस्टम सॉफ्टवेयर है जो कंप्यूटर नेटवर्क पर विभिन्न उपकरणों को नियंत्रित करता है और एक दूसरे के मध्य संवाद स्थापित करता है। नेटवर्क को सुचारू रूप से चलाने के लिए नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम एक निर्देशक के रूप में कार्य करता है।
नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम का प्राथमिक उद्देश्य एक नेटवर्क से जुड़े कई कंप्यूटरों के बीच फ़ाइल साझा(File sharing) और प्रिंटर का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करना है!

नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम के उदाहरणों में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज सर्वर 2003, माइक्रोसॉफ्ट विंडोज सर्वर 2008, यूनिक्स, लिनक्स, मैक ओएस एक्स(Mac OS X), नोवेल नेटवेयर(Novell NetWare) और बीएसडी(BSD) शामिल हैं!

***नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम की विशेषताएं (Features of Network Operating System)

नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम की निम्‍नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं, जो इसे डिस्ट्रिब्‍यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम से भिन्‍न करती हैं

1.प्रत्येक कम्‍प्‍यूटर का अपना प्राइवेट ऑपरेटिंग सिस्‍टम होता हैं।

2.प्रत्‍येक यूजर अपने सिस्‍टम (कम्‍प्‍यूटर) पर काम करता है, किसी अन्‍य सिस्‍टम का उपयोग करने के लिए उस सिस्‍टम में रिमोट लॉगइन (remote login) करने की आवश्‍यकता होती हैं।

3. प्रत्‍येक यूजर इस बात से अवगत होते हैं कि उनके फाइल्‍स नेटवर्क में कहां (किस सिस्‍टम में) रखे हुए हैं। अत: यूजर अपने फाइल्‍स को फाइल ट्रान्‍सफर कमाण्‍ड्स (File Transfer Commands) द्वारा एक सिस्‍टम से दूसरे सिस्‍टम में मूव (move) कर सकते हैं।

4. नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम की क्षमताओं (capabilities) के अन्‍तर्गत यूजर्स को नेटवर्क हॉस्‍ट्स के विभिन्‍न रिसोर्सेस को एक्‍सेस करने की अनुमति प्रदान करना।

5. एक्‍सेस को नियंत्रित (Control) करना ताकि नेटवर्क के किसी खास रिसोर्सेस को वे यूजर्स ही एक्‍सेस कर सकें, जिन्‍हें उचित ऑथराइजेशन (proper authorization) प्रदान की गई हों।


6. यूजर्स को रिमोट रिसोर्सेस का उपयोग लोकल रिसोर्सेस के समान करने की क्षमता प्रदान करना।

7. नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम एक ऐसी वातावरण प्रदान करता हैं, जिसमें यूजर्स रिमोट रिसोर्सेस को उचित रिमोट मशीन (appropriate remote machine) में लॉग इन (login) कर एक्‍सेस कर सकता है। रिमोट (Remote) एक महत्‍वपूर्ण फंक्‍शन (Function) हैं, जो यूजर्स को किसी भी रिमोट कम्‍प्‍यूटर में लॉगइन (login) करने की सुविधा प्रदान करता हैं।

नेटव‍र्क ऑपरेटिंग सिस्‍टम का दूसरा प्रमुख कार्य फाइल को एक कम्‍प्‍यूटर से दूसरे कम्‍प्‍यूटर में ट्रान्‍सफर करना हैं। फाइल को नेटवर्क इनवायरमेंट में एक मशीन से दूसरे मशीन में ट्रान्‍सफर करने के मेकेनिज्‍म (mechanism) को रिमोट फाइल ट्रान्‍सफर (Remote File Transfer) कहा जाता है।


***लिनक्स क्या है (Linux Operating System)?

Linux OS, UNIX operating System का एक बहुत ही popular version है. ये एक open source software है क्यूंकि इसकी source code internet में freely available है. इसके साथ इसे आप बिलकुल से Free में इस्तमाल कर सकते हैं, कहने का मतलब है की ये पूरी तरह से free है. Linux को UNIX की compatibility को नज़र में रखकर designed किया गया था. इसलिए इसकी functionality list प्राय UNIX से मिलती झूलती है. Linux Os open source होने के कारण इसे developers अपने जरुरत के अनुसार customize कर सकते हैं. इसके साथ ये Computer के लिए बहुत ही reliable Operating system है।


***Linux की शुरुवात कैसे हुई(History)?

Linux को Linus Torvalds ने सन 1991 में create किया था, जब वो एक university student थे University of Helsinki में. Torvalds ने Linux को एक free और Minix Os का open source alternative के तोर पर बनाया था, जो की एक दूसरा Unix clone था और जिसे मुख्य रूप से academic settings में इस्तमाल किया जाता था. उन्होंने सबसे पहले इसका नाम “Freax” रखने का सोचा था लेकिन उस Server के administrator ने जिसे की Torvalds ने अपने Origonal code को distribute करने के लिए चुना थाm उसने उनकी directory का नाम “Linux” जो की एक combination था Torvalds’ के पहले नाम और Unix का. ये नाम सुनने में इतना अच्छा लगा की इसे बाद में और बदला नहीं गया.


Linux System के Components

देखा जाये तो Linux Operating System के मुख्य रूप से तीन components होते हैं


***1. Kernel –कर्नल क्या हैं? (What is kernel)

Kernel, Linux Operating System की कोर प्रोग्राम होती है। Kernelएक ऐसा प्रोग्राम हेै जो कि कम्प्यूटर हार्डवेयर के संसाधनों को नियंत्रित करके उनका उचित उपयोग यूजर से करवाता है। जैसे ही कम्प्यूटर Start होता है कर्नल लांच हो जाता है। और कम्प्यूटर के आॅफ होने तक लोड रहता है। यह इस बात पर निर्भर नही करता कि आप कौन से साफ्टवेयर या शैल को रन कर रहे है।



2. System Library − System libraries उन special functions या programs को कहा जाता है जिन्हें इस्तमाल कर application programs या system utility Kernel के features को access करती हैं. ये libraries operating system के प्राय सभी functionalities को implement करती हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए kernel module’s code access rights की भी जरुरत नहीं पड़ती है.


3. System Utility − System Utility उन programs को कहते हैं जो की दुसरे specialized, और individual level tasks करने के लिए उत्तरदायी होते हैं.



***Linux Operating System के Basic Features(Advantages):

यहाँ पर में आप लोगों को Linux Operating System के कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण features के विषय में बताने वाला हूँ.

1. Portable − Portability का मतलब है की यह software सभी तरह के hardware में सामान ढंग से चल सकता है. Linux kernel और application programs प्राय सभी Hardware platform support करते हैं.


2. Open Source − Linux source code freely available है और ये एक community-based development project है. Multiple teams collaboration करके काम करते हैं जिससे Linux operating system की capacity को enhance किया जा सके और इसलिए ये हमेशा evolve हो रहा है.


3. Multi-User − Linux एक multiuser system है जिसका मतलब है की multiple users एक ही समय में इसके सभी system resources जैसे की memory/ ram/ application programs को इस्तमाल कर सकें.


4. Multiprogramming − Linux एक multiprogramming system है जिसका मतलब यह है की multiple applications एक साथ में run हो सकते हैं वो भी एक ही समय में.


5. Hierarchical File System − Linux एक standard file structure प्रदान करती है जिससे system files/ user files को आसानी से arranged किया जा सके.


6. Shell − Linux एक special interpreter program भी प्रदान करता है जिका इस्तमाल operating system के commands को execute करना होता है. इसके साथ इसका इस्तमाल दुसरे अलग अलग operations, call application programs को करने के लिए भी किया जाता है.


7. Security − Linux बहुत ही अच्छे security feature भी प्रदान करता है users को जैसे की password protection/ controlled access कुछ specific files/ यहाँ तक की data encryption इत्यादि.


**लिनक्स फाइल सिस्टम (Linux file system)

हार्ड डिस्क में हजारो फाईले संग्रहित रहती है इन फाईलो के अलग- अलग समूहों को अलग अलग डायरेक्टरीयो में रखकर बनने वाली संरचना फाइल सिस्टम कहलाती है, किसी भी हार्ड डिस्क पार्टीशन में संगृहित फाईलो की hierarchy तथा डायरेक्टरी की संरचना फाइल सिस्टम कहलाती है|

माइक्रोसॉफ्ट डॉस या विंडोज के समान ही लाइनेक्स में हार्ड डिस्क ड्राइव की प्रथम या मूल डायरेक्ट्री रूट डायरेक्ट्री कहलाती है, तथा जिस प्रकार विंडोज वातावरण में रूट डायरेक्ट्री के अंतर्गत my document, recycle bin ,programs file आदि प्रमुख सबडायरेक्टरीया मिलती है ,जिनमे से प्रत्येक डायरेक्ट्री की अपनी विशिष्ट भूमिका होती है उसी प्रकार लाइनेक्स में भी हमे रूट डायरेक्ट्री के अंतर्गत- bin, boot, dev, home, lib, user आदि सब डायरेक्टरी बनी बनाई मिलती है जिनमे विभिन्न श्रेणियों से सम्बंधित अलग-अलग फाइल संगृहित होती है |प्रमुख डायरेक्टरी निम्न प्रकार से है –

Root Directory 
|–binडायरेक्ट्री (लाइनक्स के आवश्यक यूटिलिटी प्रोग्रामो का संग्रह) 
|–boot डायरेक्ट्री (लाइनक्स के बूटिंग सम्बंधित सूचनाओ का संग्रह) 
|–dev डायरेक्ट्री (उपकरणों जैसव हार्डडिस्क, प्रिंटर आदि से सम्बंधित फाईले ) 
|–etc डायरेक्ट्री (विभिन्न कोंफिगारेशन फाईलो का संग्रह) 
|–home डायरेक्ट्री (विभिन्न यूजर्स डायरेक्टरीयो का संग्रह) 
|–User 1 
|–Lib डायरेक्ट्री (सॉफ्टवेयर लायब्रेरीकर्नेल मोड्यूल आदि का संग्रह) 
|–mnt डायरेक्ट्री (इसके अंतर्गत हम अन्य संग्रहण उपकरणों के फाइल सिस्टम माउन्ट कर सकते है 



Useful Common Linux Commands
अगर आप Linux पहली बार इस्तेमाल करने वाले हैं और आपको Linux के बारे में पता भी नहीं है तब आपको basic common Linux commands के विषय में जरुर पता होना चाहिए. यहाँ पर में आप लोगों को लिनक्स कमांड इन हिंदी की list देने जा रहा हूँ जो की आपको आगे बहुत काम आने वाली हैं, ध्यान दें की मैंने यहाँ केवल command की list ही प्रदान की है न की उनके syntax, syntax के विषय में आप दुसरे जगह से सिख सकते हैं जो की बहुत है आसान है!


1. ls : ये current directory content को list कर देगी.

syntax: $ ls -l will list all the files in the root directory.
2. cd : इससे आप अपने current Directory को change कर सकते हैं.

syntax: $ cd
3. cat : इससे आप file content को screen पर display कर सकते हैं, इसके साथ text files को copy और combine भी कर सकते हैं.

syntax: $ cat copy >>abc.txt


4. chmod : इससे आप file permission को बदल सकते हैं.


5. chown : इससे आप file owner बदल सकते हैं.


6. clear : इससे आप clear screen कर सकते हैं fresh start के लिए.


7. df : इससे आप used और available disk space देख सकते हैं.


8. mkdir : इससे आप नया directory create कर सकते हैं.


9. date : इससे आप current system date और time को display कर सकते हैं.


10. du : इससे आप ये जान सकते हैं की कोन सी file कितनी जगह ली हुई है.


11. file : इससे आप file में मेह्जुद type of data को recognize कर सकते हैं.


12. find: इससे आप file में कोई भी term search कर सकते हैं.


13. man : इससे आप specific command के लिए help display कर सकते हैं.


14. cp : इससे आप files और folders copy कर सकते हैं.


15. mv : इससे आप files और Directory को rename और move कर सकते हैं.


17. lpr : इससे आप कोई भी file content print कर सकते हैं.


18. less : इससे आप file content को page by page देख सकते हैं.


19. tar : इससे आप कोई भी file को compress, create और extract tar file कर सकते हैं.


20. grep : इससे आप एक file में एक string को search कर सकते हैं.


21. ssh : इससे आप remote machine के साथ connect और login (encrypted & secure) कर सकते हैं.


22. su : इससे आप अलग user में switch कर सकते हैं.


23. rmdir : इससे आप empty directory remove कर सकते हैं.


24. rm : इससे आप files and directories (empty or non-empty) remove कर सकते हैं.


25. pwd : इससे आप current user working directory को display करवा सकते हैं.


26. ps : इससे आप running process id के साथ और दुसरे information को display करवा सकते हैं.


27. passwd : इससे आप user password बदल सकते हैं.


28. more : इससे कोई भी file page by page display कर सकते हैं.


29. kill : इससे आप कोई भी process को kill कर सकते हैं उनके process id की मदद से.


30. gzip : इससे आप एक compress file with .gz extension create कर सकते हैं.


31. unzip : इससे आप कोई file को unzip or uncompress कर सकते हैं.


32. shutdown : इससे machine को shutdown कर सकते हैं.


33. free : can be used to dhow


34. top : इससे आप top process को show कर सकते हैं CPU usage के अनुसार.


35. who : इससे आप current user के information को display कर सकते हैं जो की logged in हो.


36. whereis : इससे आप किसी भी command की location को प्राप्त कर सकते हैं (की वो कहाँ पर stored हैं)


37. whatis : इससे आप कोई भी command information एक single line में दिखा सकते हैं.


38. tail : इससे आप किसी भी file के last ten lines को print करवा सकते हैं.


39. wget : इससे किसी भी file को internet से download कर सकते हैं, rename कर सकते हैं और कहीं भी store कर सकते हैं.


***साइबर कानून क्या है? What is Cyber laws?
***साइबर कानून की आवश्यकता क्यों है?Need for Cyber laws
***साइबर कानून किसे कहते है?(Cyber laws)


परिचय(Introduction): आज, कंप्यूटरों को बड़े पैमाने पर गोपनीय डेटा राजनीतिक, सामाजिक भंडार करने के लिए उपयोग किया जाता है। इंटरनेट और कंप्यूटर आर्थिक, बैंकिंग डेटा या व्यक्तिगत प्रकृति, समाज को बहुत लाभ पहुंचाते हैं। इंटरनेट और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी का तेजी से विकास विश्व स्तर पर ट्रांससीशन क्रॉम के नए रूपों की वृद्धि के कारण विशेष रूप से इंटरनेट से संबंधित है।

साइबर अपराध की कोई सीमा नहीं हैं और ये पूरे विश्व को प्रभावित कर सकते हैं। इस प्रकार कंप्यूटर संबंधित अपराधों की रोकथाम के लिए सभी देशों में आवश्यक कानूनीकरण (कानून बनाने) की जागरूकता और अधिनियमन (अधिनियमित करने की प्रक्रिया) की आवश्यकता है।

साइबर कानून एक ऐसा शब्द है, जो इंटरनेट के सभी कानूनी और नियामक पहलुओं और दुनिया भर में वेब को दर्शाता है।

साइबर कानूनों की आवश्यकता-

1. किसी भी व्यक्ति को कंप्यूटर और एक टेलीफोन नेटवर्क के लिए इंटरनेट की आवश्यकता होती है। इंटरनेट के इस अनियंत्रित वृद्धि से साइबर कानूनों की आवश्यकता होती है।

2. इंटरनेट के लिए अविश्वास का कोई भी तत्व ऑनलाइन लोगों के साथ लेन–देन करने से बचने वाले लोगों की ओर इशारा कर सकता है जिससे ई–कॉमर्स के विकास में वृद्धि हो सकती है।

3. इंटरनेट का दुरुपयोग शारीरिक समाजों को सीधे नुकसान पहुंचा सकता है ऑनलाइन लेनदेन पर करों को लागू नहीं करना, भौतिक व्यवसायों और सरकारी राजस्व पर इसका असर पड़ सकता है।

4. इस समय भारत सरकार ने भारत में रुचि को नियंत्रित करने वाले प्रासंगिक साइबर कानूनों को लागू करने की आवश्यकता महसूस की है। यह इंटरनेट पर सभी पहलुओं, मुद्दों और कानूनी परिणाम, विश्वव्यापी वेब और साइबर विश्वास को दर्शाता है।

भारत में साइबर कानून

भारतीय साइबर कानून, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, 17 अक्टूबर 2000 को लागू हुआ। आईटी अधिनियम की धारा 43 में शामिल मामलों में 1 करोड़ रुपए तक मुआवजे के लिए प्रदान किया गया है।


इस कानून में शामिल हैं

–एक कंप्यूटर का अनाधिकृत उपयोग,
– डेटा के अनाधिकृत नकल, निकालने और डाउनलोड करने,
–वायरस, ट्रोजन इत्यादि का परिचय,
–एक कंप्यूटर या नेटवर्क को बाधित,
–किसी कंप्यूटर तक पहुंच को नकारते हुए,
–कम्प्यूटर से छेड़छाड़ करके वित्तीय अनियमितताओं को कमाने,
–कंप्यूटर तक अवैध पहुंच की सुविधा प्रदान करना।
–आईटी अधिनियम 2008

–जैसा कि लोकसभा में सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन विधेयक 2006 में संशोधन किया गया!


**लिनक्स और विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में फर्क(अन्तर )

1. Linux एक ओपन सोर्स operating system है. जो सभी के लिए free में उपलब्ध होता है. जबकि windows एक close source operating system है. जिसके लिए हमें पैसे paid करने पड़ते है. 

2. आज से 10 दस साल पुराने कंप्यूटर हार्डवेयर पर भी इस समय का लेटेस्ट linux काफी स्मूथली रन करेगा. जबकि windows का नया वर्शन इनस्टॉल नहीं होगा. 

3. linux हार्ड disk के unallocated हिस्से में ही इनस्टॉल होता है. जबकि windows operating system hard disk के पार्टीशन और NTFS या FAT में फॉर्मेट किये हुए हिस्से में इंस्टाल होता है. 

4. Linux operating पर virus attack का खतरा कम होता है. जबकि windows operating में virus का खतरा बहुत ज्यादा होता है. 

5. linux operating को ऑपरेट करना थोडा कठिन हो सकता है जबकि  windows operating सामान्य यूजर के लिए बेहतर है क्योकि इसका operating बहुत ही इजी है. 

6. Linux operating ग्राफिकल यूजर इंटरफ़ेस (GUI) के साथ command line interface पर काम करता है जबकि इसका अधिकतर काम command line interface पर ही होता है. windows operating पूरी तरह से ग्राफिकल यूजर इंटरफ़ेस (GUI) पर आधारित है. 

7.Linux operating से ऑफिस वर्क, विडियो एडिटिंग, एवं सामान्य वर्क के अलावा hacking और software cracking के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. जबकि windows operating से ऑफिस वर्क, विडियो एडिटिंग, एवं सामान्य वर्क के लिए ही किया जाता है. 

8. linux operating एक multi user and multitasking operating system है. जबकि windows एक single यूजर multi tasking operating system है. windows का सिर्फ नया वर्शन windows 10 ही multi user and multitasking operating system है. जबकि linux के पुराने वर्शन भी multi user and multitasking की खासियत वाले होते थे.


इनपुट/आउटपुट redirections) पुनर्निर्देशन

पुनर्निर्देशन किसी अन्य प्रोग्राम की बजाय फ़ाइलों का उपयोग करने के अलावा पाइप के समान है। एक कार्यक्रम के लिए मानक आउटपुट स्क्रीन है। >(से अधिक) प्रतीक का उपयोग करना किसी प्रोग्राम के आउटपुट को फ़ाइल में भेजा जा सकता है। यहां /dev फिर से एक निर्देशिका सूची है लेकिन इस बार listing.txt नामक फ़ाइल पर रीडायरेक्ट की गई है ls -la> listings.txt 


टर्मिनल पर कुछ भी नहीं दिखाई देगा क्योंकि सबकुछ फाइल पर भेजा गया था। आप cat कमांड का उपयोग कर फ़ाइल पर एक नज़र डाल सकते हैं!

यदि listing.txt पहले से मौजूद था, तो इसे ओवरराइट कर दिया जाएगा। 

cat कमांड का उपयोग रीडायरेक्शन का उपयोग कर फ़ाइल बनाने के लिए किया जा सकता है, उदाहरण के लिए: cat > atextfile.txt 

अब जब भी आप टाइप करते हैं तो टेक्स्ट atextfile.txt भेजा जाएगा जब तक आप कंट्रोल-डी दबाते हैं, जिस बिंदु पर फ़ाइल बंद हो जाएगी और आपको कमांड प्रॉम्प्ट पर वापस कर दिया जाएगा। यदि आप फ़ाइल में अधिक टेक्स्ट जोड़ना चाहते हैं तो एक ही कमांड का उपयोग करें, लेकिन दो से अधिक संकेतों ( >> ) के साथ।

पाइप्स (PIPES)
पाइप्स आपको आउटपुट को एक कमांड से दूसरे में फ़नल करने की अनुमति देता है जहां इसे इनपुट के रूप में उपयोग किया जाएगा। दूसरे शब्दों में, एक प्रोग्राम से मानक आउटपुट दूसरे के लिए मानक इनपुट बन जाता है।

eg. $ ls -l | lpr 

" lpr" कमांड मानक इनपुट ls -l से  लेता है और मानक आउटपुट को प्रिंटर द्वारा  प्रिंट करवाता है।



Linux Shell In Hindi
Shell एक Command Interpreter होता है जो कि user तथा operating system के मध्य interactive तथा non-interactive interface उपलब्ध कराता है।
Shell को terminal द्वारा access किया जाता है। Terminal का प्रयोग shell को open करने और use करने के लिए किया जाता है।
Linux operating system में आपको कई shells available होते है। कुछ popular Linux shells के बारे निचे बताया जा रहा है।
Unix की सबसे प्रथम shell Bourne shell थी जो Stephen R. Bourne के द्वारा 70 के दशक में Bell Labs में बनायीं गयी थी।



Types Of Shell In Linux Hindi
Linux OS कार्य करने के लिए हमे Environment provide कराता हैं, जिन्हे हम shell कहते हैं

Linux हमे 3 प्रमुख shell provide कराता हैं जिन पर अलग- अलग सुविधाएं रहती हैं, shell में सिर्फ command mode में काम किया जाता हैं

तीन प्रमुख Shell निम्न हैं-

Bourne Shell
C-Shell
Korn Shell
1. Bourne Shell In Linux In Hindi
यह shell Mr. Steaf bourne ने develop किया था जो Bourne Shell के नाम से Famous हुआ,

यह shell C-Shell और Korn Shell की अपेक्षा कम सुविधाएं देता हैं, जैसे History की

Facilities और array की Facilities Bourne Shell में  नहीं मिलती हैं

अर्थात हम इस shell में कमांड तो Run कर सकते हैं लेकिन Run किये
गए Command की History नहीं देख सकते हैं |

यह Linux Operating System का Original System Shell है | यह Linux में root user के लिए default shell है |
Bourne shell में regular user के लिए डॉलर sign ($) prompt होता है | उसके आगे हम command लिखकर execute कराते है | और root यूजर के लिए default sign (#) होता है |

2. C-Shell In Linux In Hindi
C shell में Bourne सेल से अधिक feature होता है इस shell के माध्यम से हम जो command run करेंगे उसकी History देख सकते हैं या history को control कर सकते हैं और साथ ही उसकी  aliasing और जॉब को control कर सकते है |

C shell का प्रयोग मुख्य रूप से Unix ऑपरेटिंग सिस्टम के BSD Version में किया जाता है | इस शेल का by default Sign (%) होता है |

और root यूजर के लिए default sign (#) होता है |

c shell को bourne shell के बाद Develop किया गया है | c shell में निम्न प्रकार के function perform किये जा सकते है |

Aliasing:- किसी command के name के जगह नए name का प्रयोग करना Aliasing कहलाता हैं अर्थात हम  Command-Line को edit कर सकते हैं
History:- Execute किये गए कमांड की  History देख सकते है अर्थात इसके द्वारा हम पिछली चलाई गयी command की list
प्राप्त कर सकते हैं, और हम कमान्ड को बिना type किये फिर से Run करा सकते हैं क्युकी हम उसकी History को access कर सकते हैं
 3. Korn Shell In Linux In Hindi
इस shell को  Mr. David Korn ने develop किया था, Mr. Korn ने इसे Bell Labs में 1980 में develop किया था,

यह shell सबसे popular shell हैं.इस  को Bourne shell का Superset कहा जाता है | क्योंकि इस shell में Bourne shell से अधिक feature होता है |

इस shell में Normal User के लिए ($) sign और root यूजर के लिए (#) sign prompt होता है |

Korn shell में निम्न प्रकार के function perform किये जा सकते है |



Command Line को edit किया जा सकता है |
Command के लिए help प्रोवाइड करता है |
Execute किये गए कमांड की  History को स्टोर करता है |
Bash Shell In Linux In Hindi
यह Linux Operating System का Default Shell होता है जिसका default sign ($) होता है |

इस Shell में root यूजर के लिए (#) sign का उपयोग होता है | Bash shell में निम्न प्रकार के function perform किये जा सकते है |

Command Line को edit किया जा सकता है |
Command के लिए help प्रोवाइड करता है |
Execute किये गए कमांड की  History को स्टोर करता है |
TCSH Shell In Linux In Hindi
यह शेल C shell का Advanced Version है | जिसका default sign (%) रहता है |
shell में निम्न प्रकार के function perform किये जा सकते है |

Command Line को edit किया जा सकता है |
Command के लिए help प्रोवाइड करता है |
Execute किये गए कमांड की  History को स्टोर करता है

UNIT II-Network Operating System Administration



Network (नेटवर्क):- नेटवर्क का मतलब है आपस में जुड़े रहना अर्थात् connected रहना.
आईटी में, नेटवर्क दो या दो से अधिक कंप्यूटरों (नोड्स) का एक समूह होता है जो कि एक दूसरे से कम्युनिकेशन paths के द्वारा जुड़े रहते है. ये कम्युनिकेशन paths वायरलेस अथवा wired हो सकता है. नेटवर्क के द्वारा यूजर डेटा, फाइल तथा डिवाइस share (साझा) कर सकते है. बिना नेटवर्क के कम्युनिकेशन नहीं हो सकता है.

**Network Security:-

Network Security एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी नेटवर्क को unauthorized access (बिना अनुमति के एक्सेस), hacking, वायरस, तथा worms आदि सब से बचाया जाता है.
Network Security के लिए एक्सपर्ट की आवश्यकता होती है.
किसी नेटवर्क में network security को बढाने के लिए हमें नेटवर्क की मोनिटरिंग करनी चाहिये, सॉफ्टवेर तथा हार्डवेयर कंपोनेंट्स का प्रयोग करना चाहिए. जैसे कि firewall, एंटीवायरस सॉफ्टवेयर, IDS आदि.

Need of network security in hindi (नेटवर्क सिक्यूरिटी की आवश्यकता)

नेटवर्क सिक्यूरिटी की जरुरत अलग अलग प्रकार से होती है जो निम्न है:-
1:- इन्टरनेट में users की महत्वपूर्ण और गोपनीय जानकारी को hackers तथा attackers से बचाने के लिए.
2:- डेटा तथा सूचना को unauthorized access, loss तथा modification से बचाने के लिए.
Confidentiality:- confidentiality अर्थ है कि केवल सेंडर तथा रिसीवर ही मैसेज को देख सकते है अर्थात एक्सेस कर सकते है.
confidentiality तब खत्म हो जाती है जब कोई unauthorized व्यक्ति मैसेज को एक्सेस कर लेता है.
Authentication:- authentication मतलब यूजर की identity को authenticate करना है. अर्थात् यह सुनिश्चित करना कि जो व्यक्ति मैसेज भेज रहा है वह वही व्यक्ति है कोई दूसरा तो नहीं है.
Integrity:- integrity से तात्पर्य है कि मैसेज में कोई बदलाव (modification) नहीं होना. integrity तब तक बनी रहती है जब तक कि मैसेज में कोई बदलाव नहीं होता है.
सेंडर के मैसेज send करने के बाद मैसेज में कोई बदलाव जैसे:- alter, insert, delete आदि किया जाता है तो उसकी integrity समाप्त हो जाती है.
Access Control:- access control यह सुनिश्चित करता है कि कौन यूजर कौन सी चीज एक्सेस कर सकता है और कौन सी एक्सेस नहीं कर सकता.
Availability:- availability यह कहता है कि जो resource है वह केवल authorized यूजर के लिए ही उपलब्ध होगा बाकी को नहीं.

***Windows NT क्या है और इसका इस्तेमाल क्यूँ किया जाता है ?

विंडोज एन.टी. माइक्रोसॉफ्ट द्वारा बनाया गया ऑपरेटिंग सिस्टम का परिवार है! इसका पहला वर्जन 1993 में रिलीज हुआ था! माइक्रोसॉफ्ट विंडोज एन.टी. क्लाइंट-सर्वर नेटवर्क के लिए बनाया गया ऑपरेटिंग सिस्टम है सर्वर ने विंडोज एन.टी. सर्वर का इस्तेमाल किया और क्लएंट्स विंडोज एन.टी. वर्कस्टेशन के सर्वर से जुड़ा!

Linux Firewall

फ़ायरवॉल एक प्रणाली है जो उपयोगकर्ता द्वारा परिभाषित नियमों के एक सेट के आधार पर आने वाले और बाहर जाने वाले नेटवर्क ट्रैफ़िक को फ़िल्टर करके नेटवर्क सुरक्षा प्रदान करती है। सामान्य तौर पर, फ़ायरवॉल का उद्देश्य अवांछित नेटवर्क संचार की घटना को कम करना या समाप्त करना है, जबकि सभी वैध संचार को स्वतंत्र रूप से प्रवाह करने की अनुमति देता है। अधिकांश सर्वर इन्फ्रास्ट्रक्चर में, फ़ायरवॉल सुरक्षा की एक आवश्यक परत प्रदान करते हैं, जो अन्य उपायों के साथ मिलकर, हमलावरों को आपके सर्वर को दुर्भावनापूर्ण तरीके से एक्सेस करने से रोकते हैं।

आइए तीन बुनियादी प्रकार के नेटवर्क फायरवॉल पर जल्दी से चर्चा करें: पैकेट फ़िल्टरिंग (स्टेटलेस), स्टेटफुल और एप्लिकेशन लेयर। पैकेट फ़िल्टरिंग, या स्टेटलेस, फायरवॉल अलगाव में अलग-अलग पैकेटों का निरीक्षण करके काम करते हैं। जैसे, वे कनेक्शन राज्य से अनजान हैं और केवल व्यक्तिगत पैकेट हेडर के आधार पर पैकेट की अनुमति या इनकार कर सकते हैं। स्टेटफुल फायरवॉल पैकेट की कनेक्शन स्थिति को निर्धारित करने में सक्षम हैं, जो उन्हें स्टेटलेस फायरवॉल की तुलना में अधिक लचीला बनाता है। वे संबंधित पैकेट एकत्र करके तब तक काम करते हैं जब तक कि कनेक्शन की स्थिति निर्धारित नहीं की जा सकती है इससे पहले कि कोई फ़ायरवॉल नियम यातायात पर लागू हो। अनुप्रयोग फ़ायरवॉल डेटा के प्रेषित होने का विश्लेषण करके एक कदम आगे जाता है, जो नेटवर्क ट्रैफ़िक को फ़ायरवॉल नियमों के विरुद्ध मिलान करने की अनुमति देता है जो व्यक्तिगत सेवाओं या अनुप्रयोगों के लिए विशिष्ट हैं। इन्हें प्रॉक्सी-आधारित फायरवॉल के रूप में भी जाना जाता है।

Linux server में Firewall को सामन्यत Iptables के Name से जाना जाता है ! Iptables एक ऐसी Linux User Administrator application हैं जो Linux kernal पर स्तिथ Firewall या Net filter से Connect रहती हैं और उस Net Filter को Control करती हैं यह प्रमुख रूप से तीन भागो में बटा होता है :

1. Filter Table = यह IPtables में एक Defaults tables होती है इसमें तीन Chain होती है ! Input chain Output chain और Forward chain जो IP Address को filter करती है ! 
2. NAT Tables = Network Address Translation जैसा की नाम से ही प्रतीत होता Network Address या IP address को ट्रांसलेशन में यूज़ की जाती हे इसमें मुख्य रूप से तीन Chain होती है 
3. MANGLE Table = यह Table Hybrid Table है ! जिसमे Filter Table और NAT Tables का Combination होता हैं। इसमें पांच चेन शामिल हैं !


***स्वैप स्पेस या स्वैपिंग क्या है ?(Swape Space or swapping in memory management)

स्वैपिंग एक ऐसा मैकेनिज्म है जिसमे किसी भी प्रोसेस को अस्थाई रूप मेन मेमोरी(RAM) से सेकेंडरी स्टोरेज यानी कि हार्ड डिस्क में स्वैप किया जा सकता है और उस मेमोरी को अन्य प्रोसेस के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। कुछ समय के बाद, सिस्टम फिर से प्रोसेस को डिस्क में से अपने मेन मेमोरी (RAM) में वापस स्वैप कर लेता है।

वैसे तो स्वैपिंग की प्रक्रिया से सिस्टम के परफॉरमेंस पर असर पड़ता है लेकिन ये बड़े और एक से ज्यादा प्रोसेस को रन करने में मदद करता है।

स्वैपिंग प्रक्रिया द्वारा लिए गए कुल समय में इसके द्वारा मेन मेमोरी से डिस्क में प्रोसेस को मूव करने में जो समय लगता है वो भी शामिल होता है।

और साथ ही प्रोसेस को वापस सेकेंडरी डिस्क से मेन मेमोरी में कॉपी करने का समय भी इसमें शामिल होता है। मेमोरी को फिर से वापस gain  करने के समय को भी इसमें जोड़ा जाता है।



***नेटवर्क व्यवस्थापक (Network Administrator)

एक नेटवर्क व्यवस्थापक अनिवार्य रूप से एक कंपनी के नेटवर्क और कंप्यूटर सिस्टम के दिन-प्रतिदिन की देखभाल के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। वे समस्याओं को ठीक करते हैं जो दैनिक उपयोग में उत्पन्न होती हैं, साथ ही लंबी अवधि की परियोजनाओं जैसे दूरसंचार या डेटा बैकअप नेटवर्क के प्रबंधन पर काम करते हैं।
नेटवर्क और कंप्यूटर सिस्टम व्यवस्थापक, नेटवर्क की निगरानी करता है और आवश्यकतानुसार उनके प्रदर्शन को समायोजित करता है। नेटवर्क व्यवस्थापक के कार्य हर संगठन में हो सकते है।

नेटवर्क व्यवस्थापक के कार्य (Network Administrator Works):-

1. कंप्यूटर सिस्टम की प्रदर्शन और गति की निगरानी व जब आवश्यक हो, कंप्यूटर सिस्टम की गति और प्रदर्शन में सुधार करना।

2. नेटवर्क से उपयोगकर्ताओं को हटाने या जोड़ने, साथ ही साथ सुरक्षा अनुमतियों को अपडेट करने के लिए।

3. हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की मरम्मत व हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर स्थापित करना।

4. कार्यालय में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का उपयोग करने के तरीके के बारे में दूसरों को प्रशिक्षित करना।

5. कार्यालय में कर्मचारियों के कंप्यूटर सिस्टम के लिए समस्याओं का समाधान करना।

6. कंप्यूटर सुरक्षा प्रणालियों के उचित कार्य को स्थापित और देखरेख करना।

नेटवर्क और कंप्यूटर सिस्टम व्यवस्थापक, नेटवर्कों के प्रतिदिन के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं। वे व्यापक क्षेत्र नेटवर्क (डब्लूएएन), स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क (लैन), नेटवर्क सेगमेंट, इंट्रानेट्स और अन्य डेटा संचार प्रणाली सहित एक व्यवसाय या सरकारी संगठन के कंप्यूटर सिस्टम को व्यवस्थित, स्थापित, और समर्थन करते हैं।

*Mount Point क्या है ?

किसी भी उपकरण (device) जैसे CD-ROM, floppy disk drive आदि का उपयोग करने से पहले उसे mount करना अति आवश्यक है ! linux में बिना mount किये किसी भी उपकरण (device) का उपयोग नहीं किया जा सकता!
इसके लिए mount कमांड का इस्तेमाल किया जाता है!
CD-ROM को mount करने के लिए निम्नलिखित कमांड का इस्तेमाल किया जाता है!

#mount/dev/cdrom/mnt/cdrom

CD या floppy disk को निकलने से पहले उन्हें unmount करना जरुरी होता है !
इसके लिए निम्नलिखित कमांड का इस्तेमाल किया जाता है !

#unmount/dev/cdrom


**Shell Scripting क्या है?

Shell scripting करना यानी shell scripting का प्रोग्राम बनाना shell script एक प्रोग्राम होता है जिसे linux शैल में चलाने के लिए बनाया जाता है साधारण भाषा में बात करें तो shell script एक नार्मल text file होती है जिसमे text के रूप में लिनक्स shell से कुछ काम करवाने के लिए कुछ कमांड्स लिखे जाते हैं और उसे बाद उन्हें लिनक्स कमांड के द्वारा एक्सीक्यूट किया जाता है इन्हें shell मशीन लैंग्वेज में कन्वर्ट करके kernel को देता है और कर्नल हार्डवेयर को जिससे हमारा कंप्यूटर हमारे द्वारा दिए गए कमांड्स को एक्सीक्यूट कर पाता है।

Shell scripting हमारा काम काफी हद तक आसान बना देती है क्यूंकि हम उसे manually कमांड में एक एक करके लिखने में और बार बार उन्ही कमांड्स को रिपीट करने में जो टाइम बर्बाद होता है उससे बचाता है। शैल स्क्रिप्ट को आप किसी भी लिनक्स operating system में इस्तेमाल कर सकते हैं shell script को windows operating system की भाषा में बैच फाइल कहते हैं। shell script की मदद से हम कई कार्य कर सकते हैं जैसे file manipulation, program execution, text printing आदि।

कुछ basic कमांड्स:-

echo - यह इसके आगे लिखे हुए string या टेक्स्ट को print कराने के लिए use होती है।
sudo- मतलब super user do sudo लिखकर आप कोई भी कमांड सीधे रूट से रन कर सकते हैं।
ping- इससे हम किसी भी सर्वर या वेबसाइट का स्टेटस पता करते हैं।
clear- इससे स्क्रीन पर लिखा हुआ टेक्स्ट क्लियर हो जाता है।
mkdir- इसका इस्तेमाल करके हम नयी डायरेक्टरी या फोल्डर बनाते हैं।
rm- इसका इस्तेमाल करके हम कोई भी फाइल या डायरेक्टरी remove कर सकते हैं।

UNIT III-Desktop Publishing

***Corel Draw क्या है?

CorelDraw एक वेक्टर ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर है जिसे कोरल कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित और किया गया है। यह कोरल ड्रा ग्राफिक्स सूट के नाम से भी जाना जाता है । यह सॉफ्टवेयर विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम्स में कार्य करता है । इसका प्रयोग ग्राफ़िक्स डिजाइनिंग जैसे लोगो डिजाइनिंग, फ्लेक्स / विनायल , पैकेजिंग, एनवेलप, पम्पलेट, मेनू कार्ड, मैगज़ीन, इंवाइटेशन कार्ड, बिल/रिसीप्ट बुक,न्यूज़ पेपर, पोस्टर, बैनर, बुक्स के कवर, बिज़नेस कार्ड और भी बहुत सी डिजाइनिंग के लिए किया जाता है ।

CorelDraw  के इस भाग में हम work space के बारे में यह जानेंगे की वर्कस्पेस के किस भाग को क्या कहते हैं जैसे - Tool Box/Bar, Title Bar, Menu Bar, Standard Bar, Drawing Window, Property Bar, Docker, Ruller, Document Bar, Drawing Page , Status Bar, Navigator, Colour Plate आदि ।

Coreldraw की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें:-
https://www.shivaidea.com/2018/02/corel-draw-graphics-introduction.html


CorelDraw की विशेषताएं :-

वैसे तो बहुत सारे Image Editing Tools उपलब्ध हैं लेकिन हमें CorelDraw को ही आखिर क्यूँ चुनना चाहिए:-

1. यह Comprehensive होता है

आप CorelDraw के professional applications को इस्तमाल कर कोई भी design या photo project तैयार कर सकते हैं.
2. Creative होता हैअगर आप एक creative इन्सान हैं तब इस software के versatile और intuitive tools का सही इस्तमाल कर आप अपने unique style को लोगों के सामने उन्हें express कर सकते हैं और अपने audience को impress भी कर सकते हैं.

3. Productive होता है

चूँकि यह Software Industry Standard का होता है इसलिए इसके इस्तमाल से आप industry-leading file format compatibility प्राप्त कर सकते हैं और साथ में faster processing भी जिससे complex workflow tasks को ज्यादा efficient तरीके से किया जा सकता है. ये आपको ज्यादा productive बना देता है.

4. Innovative होता है

इसके developers लोगो के जरूरतों के हिसाब से इसमें नए features include करते हैं ताकि users हमेशा cutting-edge design technology का इस्तमाल करें और जिससे वो उनके creative journey को enrich करें state-of-the-art tools के इस्तमाल से.

5. User-Friendly होता है

इसका User Interface बहुत ही User-Friendly होता है. जिसके कारन आप इसके seamless design experience को काफी enjoy कर सकते हैं, साथ में इसके customization capabilities भी काफी आसान होते हैं जिससे किसी भी type के users को कोई परेशानी न हो.



Bitmap/Raster ImageVector Image
Pictures Pixel-based होते हैंMathematical calculations के जरिये shapes बनते हैं
इमेज का का dimension और resolution निश्चित होता हैकिसी भी आकार में scale किया जा सकता है
Image का आकार जितना बड़ा होगा file की size भी उतनी ही बड़ी होगीFile size छोटा होता है
File formats: .jpg, .gif, .png, .tif, .bmp, .psdFile formats: .ai, .cdr, .svg;
Common bitmap/raster software: Photoshop, GIMPCommon vector software: Illustrator, CorelDraw, InkScape
आसानी से कई सारे colors को blend करके painting किया जा सकता हैबिना rasterizing के colors को blend कर पाना मुश्किल है
Painting के लिए perfect हैDrawing के लिए perfect है
Raster को vector में convert किया जा सकता है लेकिन इसमें काफी समय लगता हैVector image को आसानी से raster में convert कर सकते हैं

UNIT V-Elementary Server Side Scripting Through PHP

***Dreamweaver क्या है?

Dreamweaver एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जिसका प्रयोग web developers तथा designers वेबसाइट तथा एप्लीकेशन को विकसित करने के लिए करते है। 


Dreamweaver बहुत सारी वेब तथा प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को support करता है जैसे:-HTML, C#, VB, ASP, XML इत्यादि।

Dreamweaver को 1997 में Macromedia ने विकसित किया था लेकिन बाद में Macromedia को Adobe ने खरीद लिया। 

Dreamweaver का इंटरफ़ेस WYSIWYG( what you see is what you get) है अर्थात् जब भी हम वेब पेज में कोई बदलाव करते है तो वह हमें तुरन्त ही नजर आ जाता है जबकि HTML का इंटरफ़ेस WYSIWYG नही है।

Dreamweaver में हम वेबसाइट को सर्वर पर आसानी से अपलोड कर सकते है तथा वेबसाइट में कुछ भी बदलाव करने हों तो वह भी आसानी से कर सकते है।

***WAMP सर्वर क्या है?

ये एक free software package है जिसका इस्तेमाल हम अपने computer पर web development के लिए करते है अगर आप अपने computer पर ही WordPress, Joomla, Zencart जैसे CMS (Content Management System) इस्तेमाल करना चाहते हो तो आपको wampserver की सहायता लेनी पड़ेगी, क्योंकि ये सभी PHP (Server Side Language) पर based है इसलिए इन सभी को चलाने के लिए Server की जरूरत पढ़ती है. इसके अलावा ये सब CMS अपना डाटा Database में रखते है इसलिए हमे Database की भी जरूरत होती है.

WampServer में हमे ये तीनो PHP, Server (Apache2), Database (MySQL) ही मिल जाते है इनके अलावा इस package में PHPMyAdmin भी आता है जिससे आप बहुत आसानी से अपने Database को manage कर सकते हो. ये आपको आपके computer में web development environment provide करता है. इसे अपने computer में install करने के बाद कोई भी developer pure PHP या किसी CMS से बनी हुई dynamic website को live server पर publish करने से पहले develop या test कर सकता है.

WampServer चार शब्दों से मिलकर बना है आइये जानते है इन चारो शब्दों का मतलब.

  • W – Windows Operating System, ज्यादातर लोग computer चलाने के लिए इस OS ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग करते है.
  • A – Apache Server, इसका use Windows OS पर Local Web Server (localhost) चलाने के लिए करते है जिससे अपने computer के ही browser पर ही अपने webpages को test कर सकें जैसे live server पर करते हैं.
  • M – MySQL, ये एक database management system है जिसमे हम अपनी website का सभी data (post content, user profile, comment etc) store करते है.
  • P – PHP, ये एक server side scripting language है जो Apache Server पर run होती है और इसी की help से हम MySQL database में से data निकाल कर dynamically webpage create करते है.

**HTML और XHTML में क्या अंतर है !!
Difference between HTML and XHTML 


# HTML का पूरा नाम “Hypertext Markup Language” और XHTML का पूरा नाम “Extensible HyperText Markup Language” होता है.

# HTML को Tim Berners द्वारा 1987 मे लाया गया था जबकि XHTML को World wide web consortium ने 2000 लांच किया था.

# HTML एक प्रसिद्ध मार्कअप लैंग्वेज है और वहीं दूसरी तरफ XHTML, XML और HTML का मिश्रण होता है.

# HTML के अभी तक जो वर्जन आ चुके हैं वो कुछ इस प्रकार हैं: HTML 2, HTML 3.2, HTML 4.0, HTML 5, और XHTML के अभी तक जो वर्जन आ चुके हैं वो कुछ इस प्रकार हैं: XHTML 1, XHTML 1.1, XHTML 2, XHTML 5.

# HTML, Standard Generalized Markup Language based है जबकि XHTML, extensible Markup Language based language है.

# HTML के जो filename extension होते हैं वो .htm या .html होते है जबकि XHTML के filename extension .xhtml, .htm, .html, .xml, .xht, आदि होते हैं.

***PHP क्या है ?

PHP Server Scripting Language है। और इस लैंग्वेज का इस्तेमाल डायनामिक वेब पेज को बनाने के लिए करते है। इसका उपयोग बहुत बड़ी-बड़ी वेबसाइट बनाने के लिए किया जाता है। यह डायनामिक और स्टेटिक वेबसाइट बनाने के लिए बहुत ही पावरफुल टूल होता है।

यह इंटरनेट की दुनिया में बहुत ज्यादा Popular Language है। इसे 1995 में Rasmos Lerdorf ने बनाया था। Lerdorf ने शुरू में एक प्रोग्राम लिखा था जिसका नाम Common Gateway Interface था।

इस प्रोग्राम को लिखने के लिए C Programming का इस्तेमाल किया गया और इसके द्वारा Lerdorf ने अपना Personal Home Page बनाया था और तब इस लैंग्वेज का नाम बना जिसे PHP (Personal Home Page) कहा जाने लगा।

वेबसाइट डिज़ाइनिंग में इसका प्रयोग किया जाता है। तथा इसमें C, C++, Java जैसे कोड लिखे जाते है। कोड और प्रोग्राम कंप्यूटर के अंदर एक्सीक्यूट होते है।

PHP का प्रयोग आप फ्री में कर सकते है। PHP का इस्तेमाल यूनिक्स, लिनक्स , विंडोज़ में किया जा सकता है। यह एक ऐसी स्क्रिप्टिंग लैंग्वेज है जो वेब एप्लीकेशन और वेब पेज को सर्वर साइड में कंट्रोल करने के लिए उपयोगी होती है।

***PHP की विशेषताएं
***Advantages/Features of PHP

  • PHP को अलग-अलग Platform पर Run कराया जा सकता है। जैसे – Linux, Unix, Windows, Mac, Os X आदि। 
  • यह लैंग्वेज सीखने में भी बहुत आसान है। 
  • PHP Language बिल्कुल फ्री है। इसे आप PHP की ऑफिसियल वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है। 
  • जो भी सर्वर आज हम इस्तेमाल करते है यह उन सभी के लिए अनुकूल है। जैसे – Apache, Iis Etc. 
  • PHP को Html के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। 
  • PHP के द्वारा हम फाइल को अच्छी तरह से Open, Create, Read और Write भी कर सकते है। 
  • आप इसमें कुछ Pages को Restrict भी कर सकते हो। 
  • Execute हो जाने के बाद PHP Code Html के रूप में Show होता है। 
  • डाटाबेस में जो भी Element होते है उसे PHP के द्वारा Modify, Delete, Edit किया जा सकता है।

**Data Types in PHP

डेटा प्रकार सामान्य type होते हैं जो किसी विशेष type के मूल्य के भंडारण की अनुमति देते हैं डेटा type, आकार और type के मूल्यों को निर्दिष्ट करते हैं जिन्हें stored किया जा सकता है वैरिएबल को इसके डाटा वैल्यू को घोषित करने की ज़रूरत नहीं होती है और हम डेटा type की जांच के लिए gettype () फ़ंक्शन का उपयोग करते है

PHP में परिभाषित वेरिएबल कुछ मानों को stored करता है जब भी आप किसी भी वैरिएबल को बनाने का प्रयास करते हैं तो हर बार variable के लिए डेटा type को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन कभी कभी स्थिति ऐसे हो सकती है की जब डेटा type की पहचान करने की आवश्यकता होती है तो तब डेटा type आपके type के डेटा को निर्दिष्ट करता है जिसको आप अपने variable में stored कर सकते हैं

PHP में, एक variable को डेटा type डेवलपर द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता है वेब पेज की व्याख्या के समय, php डेटा type के variable का फैसला करता है php में अलग-अलग डेटा types हो सकता है जिसमें सरल स्ट्रिंग और संख्यात्मक type जैसे सरणी और ऑब्जेक्ट्स जैसे जटिल डेटा type आदि होते हैं।
Data Types in PHP
  • String
  • Boolean
  • Array
  • object
  • Float
String
स्ट्रिंग्स अक्षर के अनुक्रम हैं, जहां प्रत्येक चरित्र एक बाइट के समान होता है।
Boolean
बूलियन एक स्विच की तरह होते हैं, इसमें केवल दो संभावित मान होते है सत्य या गलत।
Array
Array एक वेरिएबल है जो एक समय में एक से ज्यादा मान रख सकता है उदाहरण के लिए देश या शहर के नाम का एक समूह होता है।
Object
एक ऑब्जेक्ट एक डेटा प्रकार है यह डाटा को processed करने के तरीके पर डेटा और जानकारी को संग्रहीत करता है।
Float
एक फ्लोट दशमलव अंकों के साथ एक नंबर या एक्सपोनेंशन फॉर्म में एक नंबर होता है।

Operator(ऑपरेटर) in PHP

Variable और उनकी Values के बीच Operations perform करने के लिए Operators का इस्तेमाल किया जाता है| गणित में जैसे अंकों की गणना करने के लिए + , – , * , / आदि operators का इस्तेमाल किया जाता है ठीक वैसे ही PHP में भी Variables के लिए कई प्रकार के Operators होते हैं


PHP ऑपरेटर्स के प्रकार

Types of Operator in PHP


PHP में 7 प्रकार के Operators होते हैं:-

1. Arithmetic Operators

2. Assignment Operators

3. Comparison Operators

4. Increment/Decrement Operators

5. Logical Operators

6. String Operators

7. Array Operators

Arithmetic Operators क्या होते हैं

Arithmetic Operators में साधारण गणित सम्बन्धी गणना करने वाले Operators होते हैं –

1. Add ( + ) – यह दो variables को जोड़ने के के लिए इस्तेमाल किया जाता है

2. Subtraction ( – ) – यह दो variables के बीच घटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है

3. Multiply ( * ) – दो variables की गुणा करने के काम आता है

4. Divide ( / ) – यह दो Variables के बीच divide perform करने के काम आता है

5. Modulus ( % ) – यह दो variables के बीच divide perform करके जो शेष बचता है उस Value को return करता है

6. Exponentiation ( ** ) – यह किसी variable के ऊपर घात लगाने के काम में आता है
ARITHMETIC OPERATORS के उदाहरण


Assignment Operators

एक variable की value को दूसरे में assign करने के लिए Assignment Operators का इस्तेमाल किया जाता है|
x = y , PHP में “=” यह सबसे basic assignment operator है जिसका अर्थ है कि right side वाले variable की value को left वाले variable में assign किया गया है

1) x += y ; इसका अर्थ है x = x + y

2) x -= y ; इसका अर्थ है x = x – y

3) x *= y ; इसका अर्थ है x = x * y

4) x /= y ; इसका अर्थ है x = x / y

5) x %= y ; इसका अर्थ है x = x % y

Comparison Operators क्या होते हैं

Comparison Operators का कार्य Variables की Values के मध्य तुलना करना होता है

1. Equal ( == ) – अगर दो variables की value समान है तो यह True Return करता है

2. Identical ( === ) – दोनों variables की value समान है, साथ ही दोनों का Data type भी एक ही है तो यह True Return करता है

3. Not equal ( != ) – दोनों variables की value समान नहीं है तो यह True Return करता है

4. Not identical ( !==) – दोनों variables की value या तो समान नहीं है या दोनों same type के नहीं हैं तो यह True return करता है… (ध्यान दें, इसमें “या” का इस्तेमाल हुआ है, या तो दोनों की value समान नहीं हैं या दोनों के type समान नहीं है दोनों में से किसी एक condition के सत्य होने पर यह true return करता है )

5. Greater than ( > ) – यह बताता है $x > $y variables में $x कि value बड़ी है

6. Less than ( < ) – यह बताता है कि $x < $y में variable $x छोटा है Greater than or equal to ( >= ) – यह बताता है कि $x >= $y में $x या तो $y से बड़ा है या उसके बराबर है

7. Less than or equal to ( <= ) – यह बताता है कि $x <= $y में $x या तो $y से छोटा है या उसके बराबर है
Increment / Decrement Operators क्या होते हैं

PHP में Increment Operators किसी Variable की value को increase करने का कार्य करते हैं

और Decrement Operators किसी variable कि value को decrease करने का कार्य करते हैं

1. Pre-increment ( ++$x ) – $x की value में 1 की वृद्धि करके $x की value return करता है

2. Post-increment ( $x++ ) – $x की value return करता है और इसके बाद $x में 1 की वृद्धि करता है

3. Pre-decrement ( –$x ) – $x की value में 1 घटा कर $x कि value को return करता है

4. Post-decrement ( $x– ) – $x की value return करता है तथा इसके बाद $x की value से 1 घटा देता है

Logical Operators क्या होते हैं

1. And ( && ) – इसमें $x && $y, अगर $x और $y दोनों true हैं तो यह true return करता है

2. Or ( || ) – इसमें $x || $y, अगर इन दोनों में से कोई एक true है तो ये true return करेगा

3. Xor ( xor ) – इसमें $x xor $y, अगर $x और $y दोनों में से एक true है लेकिन दोनों true नहीं हैं तो यह true return करेगा

4. Not ( ! ) – इसमें !$x, यानि $x कि value true नहीं है

String Operators क्या होते हैं

String Operators खासतौर पर String Datatype के लिए Design किये गए हैं –

1. Concatenation ( . ) – यह दो String को आपस में जोड़ने के काम आता है

2. Concatenation assignment ( .= ) – यह भी दो string को जोड़ता है परन्तु यह दो Strings को जोड़कर एक String बना देता है

Array Operators क्या होते हैं

Array Operators दो array को compare करने का कार्य करते हैं –

1. Union ( + ) – यह दो Array को जोड़कर उनका Union बनाता है

2. Equality ( == ) – अगर दोनों Array की सभी value समान है तो यह true return करता है

3. Identity ( === ) – अगर दो Array कि सभी value समान हैं तथा सभी same type की हैं तो यह true return करता है

4. Inequality ( != ) – अगर दोनों Array की value समान नहीं है तो यह true return करता है

5. Non-identity ( !== ) – अगर दो Array कि value समान नहीं है और ना ही दोनों के data same type के हैं तो यह true return करता है
more on PHP:- http://htmltpoint.com/php/php_in_hindi.php
https://www.phpkiclass.com/

Cookies

कूकीज को पुराने यूज़र को identify करने के लिये यूज़ की किया जाता है कुकीज HTTP हैडर का एक हिस्सा हैं और जब ब्राउज़र में साइट एक्सेस हो रही है, तब सर्वर को दिया जाएगा।


कूकीज छोटे फाइलें हैं जिनको विज़िटर के ब्राउज़र में stored किया जाता हैं कूकीज वेबमास्टर को यूजर के बारे में जानकारी को संग्रहीत करने और यूजर के कंप्यूटर पर उनकी visit की अनुमति देने के लिए उपयोग किया लाइए जाती है


कूकीज का उपयोग बदले हुए visitors की पहचान करने के लिए किया जा सकता है, एक user को वेबसाइट पर indefinite काल में लॉग इन करना, user की आखिरी यात्रा के समय को ट्रैक करना और बहुत कुछ कार्य में cookies का उपयोग किया जाता है.

UNIT V-RDBMS CONCEPT AND MYSQL

***DATABASE क्या है ?

Computer की भाषा में Database का मतलब होता है Data का Storage. Data के Collection को ही हम Database कहते है. जैसे कि कोई University अपने छात्रो से संबंधित सभी Notifications जैसे Name, Roll Number, Address, Marks आदि अपने Database मे Store रखती है. आजकल Online Banking, ATM, Online Reservation जैसी सुविधाओं में Database का खास योगदान होता है. इनके तहत All Notifications Database में Store रहती हैं जिन्हें अपनी सुविधानुसार Access किया जाता है. जैसे कि आपका Bank Account कहीं भी हो आप कहीं से भी उसे Access कर आवश्यक सूचनाएं प्राप्त कर सकते है. Database में Audio, Video, Graphics, Image आदि सभी प्रकार की सूचनाएं Store की जा सकती है.

***डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम(Database Management System )

डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम(Database Management System ) एक सॉफ्टवेर (Software) है जिसका उपयोग डेटाबेस को बनाने(creating) और डेटाबेस को संभालने(managing) के लिए किया जाता है |मतलब की DBMS वह सॉफ्टवेर है जिससे हम एक नया Database को बना सकते है |

DBMS अपने उपयोगकर्ताओं(users) और प्रोग्रामर(programmers ) को एक व्यवस्थित तरीके के साथ डाटा को बनाने(create) , संभालने (manage) और update करने की सुविधा प्रदान करता है ।

जैसे कि MySql एक DBMS सॉफ्टवेयर है जिसमें कि हम कोई डेटाबेस बना सकते हैं माना कि हमने MySqL DBMS सॉफ्टवेयर में Student नाम का एक Database बनाया जिसके अंदर हमने Student का नाम, Student का रोल नंबर, Student का पता(Address) आदि जमा कर सकते हैं |

DBMS के कुछ उदाहरण :- MySQL, PostgreSQL, Microsoft Access(माइक्रोसॉफ्ट एक्सेस), Oracle(ओरेकल) इत्यादि।

Database Management System के कई सारे फायदे हैं Database Management System , File Based System में पैदा होने वाले सभी समस्याओं का समाधान भी है इसीलिए तो File Based System को हटाकर वर्तमान समय में हर जगह डाटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है |

डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम(Database Management System ) के कुछ फायदे नीचे दिए गए हैं : –

Controlling Data Redundancy (डेटा रिडंडंसी को नियंत्रित करना) :- File Based System में प्रत्येक एप्लिकेशन प्रोग्राम की अपनी निजी फाइल होती है इस स्थिति में, कई स्थानों पर एक ही डेटा की डुप्लिकेट files बनाई जाती हैं। डीबीएमएस में, एक संगठन(organization) के सभी डेटा को एक डेटाबेस फ़ाइल में एकीकृत किया जाता है मतलब की डेटा डाटाबेस में केवल एक स्थान पर दर्ज किया जाता है और इसे दोहराया नहीं जाता है।
Sharing of Data (डेटा साझा करना) :- DBMS में, organization के authorized users (अधिकृत उपयोगकर्ताओं ) द्वारा डेटा साझा किया जा सकता है। डाटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर डेटा को नियंत्रित करता है और डेटा को access करने के लिए उपयोगकर्ताओं को अधिकार देता है । कई उपयोगकर्ताओं को एक साथ जानकारी के समान टुकड़े तक पहुंचने का अधिकार दिया जा सकता है जा सकता है remote users भी समान डेटा साझा कर सकते हैं। इसी तरह, एक ही डाटाबेस के डेटा को अलग-अलग एप्लीकेशन प्रोग्राम के बीच साझा किया जा सकता है।

Data Consistency (डाटा स्थिरता) :- डेटा रिडंडंसी (Data Redundancy) को नियंत्रित करके, डाटा स्थिरता प्राप्त की जाती है। मतलब की डाटाबेस में एक ही प्रकार के डेटा को बार-बार इन जमा होने से रोका जाता है

Integration of Data (डेटा का एकीकरण):- DBMS में, डेटाबेस में डेटा tables (तालिका) में संग्रहित होता है। एक डेटाबेस में एक से अधिक tables होते हैं और तालिकाओं (या संबंधित डेटा संस्थाओं) के बीच रिश्तों को बनाया जा सकता है। इससे डेटा को पुनः प्राप्त करना और अपडेट करना आसान हो जाता है

Data Security :- DBMS मैं डाटा को पूरी तरह से Database Administrator (एडमिनिस्ट्रेटर) द्वारा नियंत्रित किया जाता है और डाटा बेस एडमिनिस्ट्रेटर ही यह सुनिश्चित करता है कि किस User को कितना Database के कितने हिस्से पर Access देना है या नहीं देना है इससे डेटाबेस कि सिक्योरिटी बहुत अधिक बढ़ जाती है |

Recovery Procedures :- दोस्तों कंप्यूटर एक मशीन है इसलिए यह संभव है कि कभी भी कंप्यूटर में कोई Hardware (हार्डवेयर) या Software(सॉफ्टवेयर) संबंधित समस्या उत्पन्न हो जाए ऐसे में यह बहुत जरूरी है की किसी समस्या कंप्यूटर में किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर उसमें रखें डेटाबेस को हम Recovery कर पाएं डीबीएमएस में यह काम बड़ी आसानी से किया जा सकता है |

डाटाबेस सिस्टम के कुछ संभावित नुकसान (disadvantages) भी है |

cost of implementing :- मतलब की डाटाबेस सिस्टम को implement( कार्यान्वयन ) करने में जो लागत आती है वह काफी ज्यादा हो सकता है जिसमें काफी रुपए खर्च हो सकते हैं |

effort to transfer data :– मौजूदा सिस्टम से डाटाबेस में डेटा को transfer करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और इसमें बहुत अधिक समय भी लग सकता है |

Risk Of database fails :- अगर डेटाबेस विफल हो जाता है भले ही अपेक्षाकृत कम अवधि के लिए तो संपूर्ण कंपनी पर भी असर पड़ेगा और कंपनी को कई प्रकार के नुकसान उठाने पड़ेंगे |

Difference between File System and DBMS in Hindi | फाइल सिस्टम और DBMS में क्या अंतर है !!

File System जिसे हम File Management System के रूप में भी जानते हैं. ये सबसे पुराना और अभी भी सबसे लोकप्रिय तरीका माना जाता है, जिसके जरिये आपकी डेटा फ़ाइल आपकी ड्राइव में व्यवस्थित रहती है जबकि DBMS जिसे हम Database Management System के नाम से भी जानते हैं, ये तरीका तब यूजर और प्रोग्रामर प्रयोग करते हैं, जब उन्हें डाटा को अधिक सुरक्षा और मेन्टेन करने की आवश्यकता होती है.
# File Systems एक पुराना और प्रसिद्ध तरीका है, ये एक तरह से आपके डेटा को व्यवस्थित रखने का पारंपरिक तरीका होता है जो भौतिक पहुँच के लिए आसान है, चाहे फिर वह आपके शेल्फ पर हो या ड्राइव पर जबकि DBMS में डाटा अधिक व्यवस्थित रहता है, लेकिन इसे पाने के लिए आपको अच्छी खासी जानकारी DBMS के विषय में होना आवश्यक है.
# फ़ाइल सिस्टम में डेटा अतिरेक अधिक है जबकि DBMS में डेटा अतिरेक की कम संभावना होती है.
# file system में Data Inconsistency अधिक होती है जबकि DBMS में इसकी संभावना कम होती है.
# File Management System में Centralization को पाना कठिन होता है जबकि DBMS में आसान होता है.
# फाइल सिस्टम में यूजर फाइल के फिजिकल एड्रेस के द्वारा फाइल को एक्सेस करते हैं जबकि DBMS में यूजर को फाइल का फिजिकल एड्रेस पता ही नहीं होता है.
फाइल सिस्टम में DBMS की अपेक्षा कम सुरक्षा प्रदान की जाती है.
# फाइल सिस्टम में डाटा को स्टोर करने का कोई स्ट्रक्चर नहीं होता है जबकि DBMS में होता है.

Three Level architecture of DBMS

हम यहाँ three schema architecture को describe करते हैं। इसमें तीन Levels or schema होती है। जो निम्नलिखित हैं:-
1.PHYSICAL LEVEL or INTERNAL LEVEL
* यह लेवल यह describe करता है कि DBMS database में डेटा कैसे स्टोर होता है?* e.g.- index, B-tree, hashing

* यह abstraction का सबसे निचला लेवल (lowest level) है।

2. CONCEPTUAL or LOGICAL LEVEL:-


* conceptual लेवल abstraction का अगला ऊँचा लेवल (next highest level) है।
* यह लेवल describe करता है कि DBMS database में क्या डेटा स्टोर रहता है और उनके मध्य relationship क्या है?
* यह Database administrator लेवल है।

3. EXTERNAL or VIEW LEVEL:-


ज्यादातर डेटाबेस user पूरे डेटाबेस का प्रयोग नही करते है लेकिन उसका कुछ भाग ही read करते है। इसलिए वे उस part के view level को provide कराते है।
* यह abstraction का सबसे highest level है।
* किसी विशिष्ट ग्रुप के users के लिए डेटाबेस के एक भाग(part) को describe करता है।
* डेटाबेस के बहुत सारें विभिन्न views हो सकते है।

DBA in DBMS 

Database Administrator एक ऐसा यूजर है जिसके पास पूरे डाटा का control रहता है , Database Administrator ही हमारे डेटाबेस को डिजाइन करता है!
Database Administrator ही different user create करता है और उनको एक्सेस देता है, dba एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास डाटा की सभी जिम्मेदारियां होती है!
जैसे:- 
  • Data Access किस प्रकार तथा किस पार्ट से की जा रही है
  • डाटा एक्सेस करने वाले यूजर Authorized है या नहीं
  • डेटाबेस को अपडेट किया गया है या नहीं
  • user problem को ठीक करना
  • स्कीमा में परिवर्तन करना
  • database के सॉफ्टवेयर को मेंटेनेंस करके रखना

Function Of DBA/DBA के कार्य 

1 .  Defining Conceptual Schema

हमारे database का logical डिजाइन होता है वह DBA डिसाइड करता है अर्थात  टेबल में कौनसी Primary Key होगी और कौनसी Foreign Key  होगी यह सभी Decision  डाटा एडमिनिस्ट्रेटर करता है

2. Physical Database Design

जब हम कोई डेटाबेस Create करते हैं  तो वो डेटाबेस फिजिकल स्टोरेज अर्थात हमारे कंप्यूटर के Disc में कसी तरह से store होगा  ये भी dba डिसाइड करता है

3. Security And Integrity Checks

हमारे database के लिए कौन सा user  authenticate  है  और डाटा को access करने के लिए कौन सा यूजर authorized  है ये भी dba  बताता है , और dba ही data की  integrity को maintainकरता है

4. Backup And Recovery Strategy

जब हम कोई database में काम करते हैं तो संभवत कभी ना कभी सिस्टम में फॉल्ट होगा तो उस data का बैकअप लेना चाहिए, तो  बैकअप कब होगा , कितने इंटरवल के बाद होगा और हमारे Files में कहां होगा यह सभी चीजें DBA डिसाइड करता है , यदि हमारा database Corrupt  हो गया है तो उसकी Recovery  हम कैसे करेंगे यह भी DBA डिसाइड करता है

5. Granting User Access –

हमारे डेटाबेस में जितने भी यूजर होते हैं उनको डेटाबेस का access देना है यह भी DBA डिसाइड करता है |
Example :- यदि हमारे डेटाबेस में 5 यूजर हैं (u1 – u5) , तो U1 को only Selected Permission देना है और  u5 को Delete Permission देना  है , तो परमिशन DBA ही देता है!

DBMS में, Data dictionary एक फ़ाइल या फाइलों का समूह होती है जो कि डेटाबेस के मेटाडाटा(metadata) को store करती है।
data dictionary डेटाबेस के वास्तविक डेटा को contain नही करती है, बल्कि यह सिर्फ डेटा को manage करने के लिए बहीखातों के रूप में information(जैसे-टेबल का नाम तथा विवरणआदि) को स्टोर करता है।

Data Dictionary के बिना DBMS डेटाबेस से डेटा को Access नही कर सकता है।


Data Dictionary को Metadata भी कहते है और वह डेटा जो डेटा के बारें में सुचना provide करती है metadata कहलाती है।

Data dictionary का प्रयोग डेटाबेस ऑपरेशन, डेटा integrity तथा accuracy को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

Data Dictionary दो प्रकार की होती है:-
1:-Active data dictionary
2:-Passive data dictionary

1:-Active data dictionary:-वह data dictionary जो कि हर समय अपने आप ही DBMS के द्वारा update हो जाती है, Active data dictionary कहलाती है।


2:-Passive data dictionary:-Passive data dictionary भी active data dictionary के समान होती है परन्तु इसमें यह automatically DBMS के द्वारा update नही होती है।
UNIT VI-PL/SQL


**KEYS in DBMS ?

DBMS में निम्नलिखित प्रकार की keys होती हैं।


1:- Primary key:-


किसी relational table की primary key टेबल के प्रत्येक record को uniquely identify करता है।
primary key दो प्रकार की होती है।
1. simple primary key
2. composite primary key



1. Simple Primary key:- simple primary key केवल एक field से मिलकर बना होता है।







2. Composite primary key:- composite primary key एक से ज्यादा fields से मिलकर बनी होती है।






primary key को define करना:-
1. primary key अद्वितीय(unique) होती है।
2. किसी भी टेबल में केवल एक ही primary key हो सकती है।
3. ये single या multi column हो सकती है, multi column primary key को हम composite primary key कहते है।
4. composite primary key में अधिकतम 16 column हो सकते है।
5. यह null values को contain नही करती है।


2:-Foreign key:- रिलेशनल डेटाबेस टेबल में एक foreign key columns का एक समूह होता है जो कि दो tables में data के मध्य link उपलब्ध कराता है।
कहीं कहीं पर foreign key को referencing key भी कहा जाता है।
जब किसी एक primary key को किसी दूसरे टेबल में प्राइमरी key के रूप में प्रयोग करते है तो उसे foreign key कहते हैं। foreign key, data में integrity को maintain करने के लिए method उपलब्ध कराता है।



3.Composite key:-

जब कोई primary key बहुत सारें attributes से मिलकर बनी होती है तो उसे हम composite key कहते है।
रिलेशनल डेटाबेस टेबल में composite key दो या दो अधिक columns का समूह होता है जो कि table में प्रत्येक row को uniquely identify करता है।

4. Artificial key:-

Artificial key तब permit होती है जब
(a)- किसी भी attributes के पास primary key की सभी properties नही होती है।
(b)- primary key बहुत बड़ी तथा complex होती है।


5- Super key:-
RDBMS में एक super key, columns का एक combination होता है जो कि row को uniquely identify करता है।

6:- Candidate key:-

Candidate key, attribute का सेट या एक attribute होता है जो एक रिकॉर्ड को यूनिक रखने के लिए प्रयोग की जाती है यह attribute Candidate key कहलाते हैं इस तरह के case में Candidate key में से एक key को Primary key चुन लिया जाता है तथा शेष बचे हुए Candidate keys, alternate key कहलाती हैं एक टेबल में केवल एक ही प्राइमरी की होती है जबकि कैंडिडेट की एक से अधिक हो सकती हैं|


*SQL Constraints किसे कहते है?

SQL Constraints का इस्तेमाल table के columns के लिए कुछ rules देने के लिए किया जाता है|
Constraints को table CREATE करते वक्त और table ALTER करते वक्त दिया जाता है|
SQL Constraints ये Column level हो सकते है या Table level हो सकते है| यहाँ पर Column level Constraints सिर्फ single column पर ही apply होते है और Table level Constraints ये पूरे table पर apply होते है|

Syntax for Creating Constraints in SQL

CREATE TABLE table_name(
column_name1 data_type constraint,
column_name2 data_type constraint,
........,
column_nameN data_type constraint
);

Types of Constraints

·         Types Of Constraints –
·         1) Not null:- किसी table के column में अगर कोई Value नहीं दी जाती तो by default उस जगह Value Null होती हैं। यदि हम यह चाहते हों कि किसी Value के अभाव में उस जगह Null Set न हों, तो उस Column को हमें Null Constraint देना पड़ेगा।
·         2) Default:- यदि Column में कोई Value नहीं दी जाती तो default value set हो जाती हैं।
·         For e.g. हम एक table create करते हैं जिसका नाम basic हैं। इसमें field हैं name, id, address, और email। इसे create करने के लिए हम यह command देंगे
·         create table basic(name varchar(70), id int(11) not null, address varchar(100), email varchar(50) default ‘No email’);
·         यहाँ आपने देखा कि हमने जो email field बनाई हैं उसमें default value ‘No email’ दी हैं। इसका मतलब यह हैं कि value insert करते वक्त यदि कोई user email नहीं देता तो वहाँ पर email की default value set हो जाएगी।
·         3) Primary Key :- किसी table में हर record की एक अलग पहचान होती हैं। Primary Key table में किसी record को uniquely identify करने के लिए दी जाती हैं। अगर हम किसी column को primary key बनाते हैं तो उस column की हर value unique होगी। अगर हम Primary key define करते हैं तो not null और unique constraint define करने की जरूरत नहीं पड़ती।
·         4) Foreign Key :- किसी Table की Foreign Key किसी दूसरी table की primary key होती हैं।
·         Foreign Key Constraints को दो table के बीच में relation स्थापित करने के लिए use करते हैं। किसी table की foreign key किसी दूसरी table की primary key होती हैं। जिस table में foreign key होती हैं वह child table कहलाती हैं तथा जिस table से इसका relation होता हैं (यह table जिसमें यही foreign key एक primary key होती हैं) वह ‘parent table’ कहलाती हैं।
·         5) Unique :- table के हर एक column की values अलग-अलग होती हैं। unique constraint और primary constraint में मूल difference ये होता हैं कि primary key में कोई भी value null नहीं हो सकती जबकि unique constraint में कोई value null हो सकत हैं।
·         6) Check :- यह Constraint किसी table के column में स्थापित की गई value को limit करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।

·         7) Index :- Index किसी टेबल में तेज गति से data को create और retrieve करने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।


**SQL FUNCTIONS IN HINDI

(SQL में कौन कौन से functions का इस्तेमाल किया जाता है?)SQL BUILT-IN-FUNCTIONS:-


SQL को functions और भी ज्यादा powerful बनाते है। functions से हम मुश्किल tasks को भी आसानी से हल कर सकते है। इसलिए हम यहां built-in-functions के बारें में चर्चा करेंगे। जो निम्न है:-


1. Aggregate functions:

1. SUM:- SUM फंक्शन का प्रयोग न्यूमेरिक कॉलम के total sum को select करने के लिए किया जाता है।

इसका syntax निम्न है:-

【SELECT SUM (column) FROM table】

उदहारण के लिए:-



यह टेबल students नाम से है। इस table की कॉलम के सभी ages को जोड़ दिया जाता है।

【SELECT SUM (age) FROM students】

इस उदहारण का answer= 64


2-AVG:- AVG फंक्शन, कॉलम की औसत वैल्यू को return करता है। इसका syntax निम्न है:-

【SELECT AVG (column) FROM table】

उदहारण:- ऊपर के चित्र की table में:-

【SELECT AVG (age) FROM students】

इस उदहारण का answer=21.33


3-MAX:- MAX फंक्शन कॉलम में सबसे उच्च(highest) वैल्यू को return करता है। इसका syntax निम्न है:-

【SELECT MAX (column) FROM table】

उदहारण:- ऊपर की टेबल से

【SELECT AVG (age) FROM students】

इस उदहारण का answer= 23

4- MIN:- MIN फंक्शन का प्रयोग column की निम्न(lowest) वैल्यू को return करने के लिए किया जाता है।

इसका syntax निम्न है:-

【SELECT MIN (column) FROM table】

उदहारण:- ऊपर की टेबल से

【SELECT MIN (age) FROM students】

इस उदहारण का answer= 20


5- COUNT:- COUNT फंक्शन का प्रयोग एक डेटाबेस टेबल में rows की संख्या को गिनने(count) के लिये किया जाता है।

इसका syntax निम्न है:-

【SELECT COUNT (column) FROM table】


6-SQRT:- इस फंक्शन का प्रयोग दिए हुए नंबर के वर्ग मूल(square root) को ज्ञात करने के लिए किया जाता है।


7-RAND:- इस फंक्शन का प्रयोग random numbers को generate करने के लिए किया जाता है।


2.-Numeric Function:- 
इन फंक्शनस का प्रयोग सामन्यतया गणितीय manipulation करने के लिए किया जाता है। कुछ numeric functions निम्न है:-


ASIN, ABS, FLOAT, INT, INTEGER, LN, COT, COS, DOUBLE, LOG10

3. String functions:-

string functions का प्रयोग string manipulation के लिये किया जाता है। कुछ string functions निम्न है:-


CHAR, CONCAT, GRAPHIC, DIGITS, LCASE, LEFT, LENGTH, LOCATE, LOWER, DIFFERENCE

UNIT-VI (PL/SQL)

PL/SQL क्या है ?

PL/SQL एक प्रक्रियात्मक भाषा है जिसे विशेष रूप से अपने सिंटैक्स के भीतर SQL बयानों को गले लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। PL / SQL प्रोग्राम इकाइयाँ Oracle डेटाबेस सर्वर द्वारा संकलित की जाती हैं और डेटाबेस के अंदर संग्रहीत की जाती हैं। और रन-टाइम पर, PL / SQL और SQL दोनों एक ही सर्वर प्रक्रिया के भीतर चलते हैं, जिससे अधिकतम दक्षता आती है। पीएल / एसक्यूएल स्वचालित रूप से ओरेकल डेटाबेस की मजबूती, सुरक्षा और पोर्टेबिलिटी को विरासत में मिला है।


PL/SQL की विशेषताएं:

  • PL/SQL मूल रूप से एक प्रक्रियात्मक भाषा है, जो निर्णय लेने, पुनरावृत्ति और प्रक्रियात्मक प्रोग्रामिंग भाषाओं की कई और अधिक सुविधाएँ प्रदान करती है।
  • PL / SQL एकल कमांड का उपयोग करके एक ब्लॉक में कई प्रश्नों का निष्पादन कर सकता है।
  • कोई PL/SQL इकाई जैसे प्रक्रिया, कार्य, पैकेज, ट्रिगर और प्रकार बना सकता है, जो अनुप्रयोगों के लिए डेटाबेस में संग्रहित किया जाता है। 
  • PL / SQL अपवाद को संभालने के लिए एक सुविधा प्रदान करता है जो PL / SQL ब्लॉक में अपवाद हैंडलिंग ब्लॉक के रूप में होता है।
  • PL/SQL में लिखे गए एप्लिकेशन कंप्यूटर हार्डवेयर या ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए पोर्टेबल होते हैं।
  • PL/SQL व्यापक त्रुटि जाँच प्रदान करता है।


***PL / SQL ब्लॉक का वर्णन कीजिये!

एक साधारण PL / SQL ब्लॉक:

प्रत्येक PL / SQL कार्यक्रम एसक्यूएल और PL / SQL विवरणों के होते हैं जो एक PL / SQL ब्लॉक से।PL / SQL ब्लॉक तीन वर्गों के होते हैं:
  • Declaration Section-घोषणा खंड (वैकल्पिक)।
  • Execution Section-निष्पादन खंड (अनिवार्य)।
  • Exception Handling Section-यह उपवाद सम्भालना (या त्रुटि) खंड (वैकल्पिक)।
DECLARE
     Variable declaration
BEGIN
     Program Execution
EXCEPTION
     Exception handling
END;


(Declaration Section)घोषणा धारा:

एक PL / SQL ब्लॉक की घोषणा अनुभाग आरक्षित कीवर्ड की घोषणा के साथ शुरू होता है। यह खंड वैकल्पिक है और चर, स्थिरांक, रिकॉर्ड और कर्सर, जो निष्पादन अनुभाग में डेटा हेरफेर करने के लिए उपयोग किया जाता है जैसे किसी भी प्लेसहोल्डर घोषित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। प्लेसहोल्डर चर, स्थिरांक और रिकॉर्ड्स के किसी भी है, जो अस्थायी रूप से डेटा संग्रहीत करता है हो सकता है। कर्सर भी इस अनुभाग में घोषित किया गया है।

(Execution Section)निष्पादन धारा:

एक पी एल / एसक्यूएल ब्लॉक के निष्पादन खंड आरक्षित कीवर्ड शुरू के साथ शुरू होता है और अंत के साथ समाप्त होता है। यह एक अनिवार्य खंड है और इस खंड जहां कार्यक्रम तर्क किसी भी कार्य को करने के लिए लिखा है। छोरों, सशर्त बयान और एसक्यूएल बयान की तरह कार्यक्रम निर्माणों निष्पादन खंड के हिस्से के रूप में।

(Exception Handling Section)अपवाद धारा:

एक PL / SQL ब्लॉक के अपवाद अनुभाग आरक्षित कीवर्ड अपवाद के साथ शुरू होता है। यह खंड वैकल्पिक है। कार्यक्रम में किसी भी त्रुटि, इस खंड में संभाला जा सकता है ताकि PL / SQL ब्लाकों शान से समाप्त हो जाता है। PL / SQL ब्लॉक अपवाद संभाला नहीं जा सकता हैं, तो ब्लॉक त्रुटियों के साथ अचानक समाप्त हो जाता है।


ऊपर तीन वर्गों में हर बयान अर्धविराम के साथ समाप्त होगा ; । पी एल / एसक्यूएल ब्लॉक अन्य पी एल / एसक्यूएल ब्लॉकों के भीतर नेस्ट किया जा सकता है। टिप्पणियाँ कोड दस्तावेज़ करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

***PL/SQL PROCEDURE:-

Procedure एक stored प्रोग्राम होता है जिसमें से हम parameters pass कर सकते है। procedures का प्रयोग एक specific task को perform करने के लिए किया जाता है। यह दूसरे प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के procedure की तरह ही similar होता है।
PROCEDURE फंक्शन(function) की तरह ही कार्य करता है परन्तु function में return value पहले से निर्धारित होती है जबकि procedure में ऐसा नही किया जाता है। function को call करना तथा procedure को call करना अलग-अलग विधियां है। Function call करते समय उसकी वैल्यू या तो किसी variable में ली जाती है या output में print करायी जाती है। जबकि PROCEDURE को direct call किया जाता है तथा आवश्यक parameters pass कर दिए जाते है। PROCEDURE भी FUNCTION की तरह oracle database में store रहते है जिसे आवश्यकता के अनुसार user call कर सकता है।


TYPES OF PARAMETERS IN PL/SQL PROCEDURE:-

1.IN :- IN पैरामीटर procedure को एक वैल्यू  pass करने देता है। यह एक read-only पैरामीटर है। Procedure के अंदर, IN पैरामीटर Constant की तरह कार्य करता है।

2.OUT:- एक OUT पैरामीटर calling program को वैल्यू return करता है। Procedure के अंदर, OUT पैरामीटर variable की तरह कार्य करता है।

3.IN OUT:- IN OUT पैरामीटर procedure को एक initial वैल्यू  pass करता है और caller को एक updated वैल्यू return करता है।


***PL/SQL TRIGGERS IN HINDI:-

Trigger संग्रहित(stored) प्रोग्राम्स होते है जब कभी table में कोई action जैसे:-insertion, deletion, update किया जाता है तो triggers अपने आप स्वयं execute हो जाते है।
Triggers को call या invoke नही किया जा सकता क्योंकि जब भी किसी DML स्टेटमेंट को perform किया जाता है तो trigger अपने आप execute हो जाता है।

syntax of creating trigger:-
CREATE [OR REPLACE] TRIGGER trigge_name
{BEFORE AFTER |INSTEAD OF}
{INSERT [OR|UPDATE [OR|DELETE}
[OF col_name]
ON table_name
[REFERENCING OLD AS old, NEW AS new]
[FOR EACH ROW]
WHEN (condition)
BEGIN- Sql statements
END;
Where:

Types of triggers:-Trigger दो प्रकार के होते है:-
1:-Row level trigger:- जब प्रत्येक row में update, deletion, तथा insertion होता है तो तब Row level trigger घटित होता है।
2:-Statement level trigger:-जब प्रत्येक SQL स्टेटमेंट execute होता है तब statement level trigger घटित होता है।

***PL/SQL CURSOR IN HINDI:-

SQL स्टेटमेंट को प्रोसेस करने के लिए oracle एक मेमोरी एरिया create करता हैजिसे context एरिया भी कहा जाता है।
                           Cursor 
इस मैमोरी एरिया के लिए पॉइंटर होता है और cursor के द्वारा इस मैमोरी(context) एरिया को नियंत्रित किया जाता है।
cursor का size उसके डेटा के अनुसार flexible होता है। Oracle cursor को open करने के लिए main memory में कुछ space predefined रखता है इसलिए cursor की size limited होती है।
                              
जब भी कोई query run होती है तो cursor कार्य करता है।
Cursor दो प्रकार की होता है:-
1:-Implicit cursor
2:-Explicit cursor
1:-Implicit cursor:- जब भी SQL स्टेटमेंट execute होता है, Oracle के द्वारा implicit cursor को automatically create कर दिया जाता है( जब स्टेटमेंट के लिए कोई explicit cursor नही होता है।)
प्रोग्रामर्स implicit cursor तथा उसमें उपस्थित सूचना को नियंत्रित नही कर सकते है।
Oracle द्वारा internal processing के लिए जो cursor open किया जाता है उसे implicit cursor कहते है ।
2:- Explicit cursor:- Explicit cursor यूजर-डिफाइंड होता है। Explicit cursor के द्वारा हम मेमोरी(context) एरिया में ज्यादा नियंत्रण कर सकते है।
जब किसी टेबल से कुछ रिकॉर्ड को PL/SQL code block में प्रयोग किया जाता है तब cursor का उपयोग किया जाता है। इस cursor को declare करबे के लिए SQL queries का प्रयोग किया जाता है।
इन दोनों प्रकार के cursor में चार common attributes होते हैजो निम्लिखित है:-
1:-%isopen:-
यदि cursor open है तो true अथवा false वैल्यू return करता है।
2:-%found:-यदि record सफलतापूर्वक fetch किये गए है तो true अथवा false वैल्यू return करता है।
3:-%notfound:-यदि record successfully fetch नही किये गए हो तो true अथवा false वैल्यू return करता है। 
4:-%Rowcount:-यह process किये गए record की संख्या return करता है।
Explicit cursor management:- Explicit cursor management करने के लिए निम्न steps होते है:-
1:-SQL 
की select query द्वारा cursor एरिया select करते है।
2:-Cursor 
को open करते है।
3:-Cursor variable 
में Record को fetch करते है।
Explicit cursor को create करने के लिए निम्नलिखित syntax है:-
[ CURSOR cursor_name IS select_statement ]

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